दंगाइयों को भारी पड़ेगा पब्लिक प्रॉपर्टी का नुक्सान

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रिटायर्ड जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले भारत के 22वें विधि आयोग ने शुक्रवार 2 फरवरी को मोदी सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी। रविवार को सामने आई इस रिपोर्ट में दंगाइयों के लिए कड़े जमानत प्रावधानों की सिफारिश की गई है।

पैनल ने सुझाव दिया है कि सड़कें जाम करने और तोड़-फोड़ करने वालों पर सार्वजनिक-निजी संपत्तियों को हुए नुकसान के बाजार मूल्य के बराबर जुर्माना लगाया जाए। दंगाइयों से वसूली के बाद ही जमानत दी जाए।

सरकार नेशनल हाईवे या पब्लिक प्लेस पर बार-बार नाकेबंदी या प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे।

आयोग ने कहा- केरल की तरह अलग कानून बना सकते हैं
लॉ पैनल की रिपोर्ट में बताए गए जुर्माने का मतलब उस राशि से है, जो डैमेज हुई प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के बराबर होगी। अगर इस प्रॉपर्टी की वैल्यू निकाल पाना संभव न हो, तो इसका टोटल अमाउंट अदालत तय कर सकती है। इतना ही नहीं, पैनल ने कहा कि इस बदलाव को लागू करने के लिए सरकार एक अलग कानून ला सकती है।

पैनल ने बताया कि केरल में निजी संपत्ति को नुकसान की रोकथाम और मुआवजा भुगतान अधिनियम बनाया गया है। सरकार इसे भारतीय न्याय संहिता के लागू प्रावधानों में बदलाव करके या जोड़कर भी वसूल सकती है।

 

22वें विधि आयोग की 248वीं रिपोर्ट में मणिपुर का भी जिक्र
विधि आयोग की 284वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराधियों को जमानत देने की शर्त के रूप में डैमेज पब्लिक प्रॉपर्टी की कीमत जमा करने के लिए मजबूर करना निश्चित तौर पर प्रॉपर्टी को नुकसान से बचाएगा। दरअसल, आयोग ने इस संशोधन के लिए बड़े पैमाने पर हुई झड़पों का हवाला दिया है।

इनमें 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों, जाट (2015) और पाटीदार (2016) आरक्षण आंदोलन, भीमा कोरेगांव विरोध (2018), CAA विरोधी प्रदर्शन (2019), कृषि कानून आंदोलन (2020) से लेकर पैगंबर मोहम्मद (2022) पर की गई टिप्पणी के बाद हुई हिंसा और पिछले साल मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा शामिल है।

आपराधिक मानहानि को बरकरार रखा जाए
आयोग ने शुक्रवार को ही सौंपी एक अलग रिपोर्ट में आपराधिक मानहानि के अपराध को बरकरार रखने की सिफारिश की है। आयोग ने 285वीं रिपोर्ट में कहा है कि व्यक्तियों को दुर्भावनापूर्ण झूठ से बचाने की जरूरत के साथ खुलेआम बोले जाने वाली बातों को कंट्रोल करना भ्ज्ञभ् जरूरी है ताकि किसी व्यक्ति की छवि धूमिल न हो।

दरअसल यह मामला अगस्त 2017 में कानून मंत्रालय द्वारा लॉ पैनल को भेजा गया था। पैनल ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कोर्ट ने आपराधिक मानहानि के अपराध की संवैधानिकता को बरकरार रखा था।

कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा करने जैसे कुछ जरूरी प्रतिबंधों के अधीन है।

आपराधिक मानहानि कानून के दुरुपयोग की चिंताओं पर आयोग ने लिखा कि अपराध की सजा के रूप में सामुदायिक सेवा शुरू करके पीड़ित के हितों की रक्षा की जा रही है और वैकल्पिक सजा ने इसके दुरुपयोग की गुंजाइश को भी बेअसर कर दिया है।

अमित शाह ने तीन कानूनों में बदलाव के बिल पेश किए थे
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में 163 साल पुराने 3 मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा शीतकालीन सत्र 2023 में पेश किए थे। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर किया गया है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC) और एविडेंस एक्ट हैं।

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