कृष्णा विश्वविद्यालय में जल संरक्षण विषय पर हुई संगोष्ठी

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छतरपुर जिले में स्तिथ श्री कृष्णा विश्वविद्यालय के सभागार में जल संरक्षण पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम का आरम्भ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण एवम् दीपप्रज्जवलन कर किया गया है। सर्वप्रथम विश्वविद्यालय के चेयरमैन महोदय डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह गौतम ने अतिथियों का पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। अपने स्वागत भाषण में बुन्देलखंड के जल पुरुष डॉ. संजय सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा ‘जल जीवन का अमृत है। हमें वर्तमान व भावी पीढ़ियों के लिये जल संरक्षण की आवश्यकता है। आगामी दशकों में यह विश्व के कई क्षेत्रों में एक गंभीर अभाव की स्थिति में चला जायेगा। प्राचीन काल में जल को एक अनमोल संपदा के रूप में देखा और समझा जाता था। वास्तव में हर प्राचीन संस्कृति पानी को पवित्र संसाधन के रूप में देखती थी,वर्तमान परिवेश में तापमान हो या वातावरण का संतुलन सभी बिगड़ रहा हैं। उन्होने कहा कि 2030 तक जल में अपार कमी होने वाली है। कावेरी, गंगा जैसी नदी का जल स्तर कम हो गया है। केन और यमुना जैसी नदियां अपने अस्तित्व को तलाश रही है। जीवन के लिये हवा और पानी दोनों महत् वपूर्ण घटक हैं। पर्यायवरण असंतुलन से आद्रता कम हो रही है। बुंदेलखंड में जहां लगभग 120 दिन बरसात होती थी वहां अब इस वर्ष लगभग 26 दिन हुई है। जल को आवश् यकतानुसार उपयोग करना चाहिए। अब खेती में 80 % की जगह 50% प्रयोग ही करना पड़ेगा। संगीत विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री परशुराम अवस्थी ने अपने गीत के माध्यम से अपनी बात रखी।*जल जीवन का आधार इसे करो न बेकार । जीवन में करो सुधार जल से है संसार।*मुख्य अतिथि सुश्री कैरोलिन सी.ओ. व् ही.सी.ए. ने कहा जल संरक्षण आवश्यक हैं। भारत में जल संरक्षण का एक बेहतरीन इतिहास है। यहाँ जल संरक्षण की एक मूल्यवान पारंपरिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपरा रही है उदाहरण स्वरूप नदी, तालाब, कुँआ इत्यादि देश के अलग-अलग हिस्सों में इनमें से अलग-अलग तरीकों को अपनाया गया जो वहाँ के जलवायु के उपयुक्त है। उन् होनें वर्षा मापन के लिये टोपण नामक यंत्र की विस् तार से चर्चा की।गोष् ठी की अध् यक्षता कर रहे विश् वविद्यालय के चेयरमैन डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह गौतम ने कहा कि भविष्य में जल की कमी की समस्या को सुलझाने के लिये जल संरक्षण ही जल बचाना है। भारत और दुनिया के दूसरे देशों जल की भारी कमी है जिसकी वजह से आम लोगों को पीने और खाना बनाने के साथ ही रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने के लिये जरूरी पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि दूसरी ओर, पर्याप्त जल के क्षेत्रों में अपने दैनिक जरुरतों से ज्यादा पानी लोग बर्बाद कर रहें हैं। हम सभी को जल के महत्व और भविष्य में जल की कमी से संबंधित समस्याओं को समझना चाहिये। हमें अपने जीवन में उपयोगी जल को बर्बाद और प्रदूषित नहीं करना चाहिये तथा लोगों के बीच जल संरक्षण अति आवश्यक है। उन् होनें बताया कि विगत 10 वर्षों से जल संरक्षण पर कार्य कर रहे हैं। जब हमने विश्वविद्यालय की स् थापना की तब उस समय जल संरक्षण के लिये पन् ना एवं सटई रोड से गुजरने वाले नाले पर तीन स् टाप डैम विश् वविद्यालय परिसर में बनाए। उन् होनें जल संरक्षण से संबंधित पाठ्यक्रमों को विश् वविद्यालय में प्रारम् भ करने की घोषणा की एवं जल संरक्षण के अन् तर्गत विधार्थियों के लिये रोजगार हेतु परमार्थ समाजसेवी संस् थान से अनुबंध करने की घोषणा की।उपकुलपति श्री गिरीश त्रिपाठी ने कहा कि धरती पर जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये जल का संरक्षण और बचाव बहुत जरूरी होता है क्योंकि बिना जल के जीवन संभव नहीं है। पूरे ब्रह्माण्ड में एक अपवाद के रुप में धरती पर जीवन चक्र को जारी रखने में जल मदद करता है क्योंकि धरती इकलौता अकेला ऐसा ग्रह है जहाँ पानी और जीवन मौजूद है।सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत बुन् देली बाल कलाकरों द्वारा मोनिया नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति की गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रणति चतुर्वेदी ने और आभार उपकुलपति गिरीश त्रिपाठी ने व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में मुख् य अतिथि सुश्री कैरोलिन सीओ व्हीसीए श्री टोबेस, टेक् नीकल हेड, डब्लयूएचएच एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. संजय सिंह, परमार्थ समाजसेवी संस्था प्रमुख निवेदिता जी, कंट्री डायरेक्टर, डब्लूयूएचएच इंडिया, संजीव सीनियर प्रोजेक्ट कोऑडिनेटर, डब्लयूएचएच इंडिया, सुश्री अपर्णा जी, प्रोजेक्ट कोऑडिनेटर, डब् लयू.एच.एच.इंडिया, श्रीमती शिवानी सिंह, सीनियर प्रोग्राम मैनेजर, गिरीश त्रिपाठीउपकुलपति विजय सिंह कुलसचिव उपस्थित रहे। व् याख् यान माला की अध् यक्षता विश् वविद्यालय के चेयरमैन डॉ. पुस्पेंद्र सिंह गौतम ने की। विश्वविद्यालय के समस् त प्राध् यापकगण, कर्मचारीगण एवं छात्र-छात्राऐं उपस्थित रहे

चतुरेश मिश्रा

संभाग प्रमुख चाणक्य न्यूज इंडिया सागर एमपी

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