सत्ता पक्ष की आक्रामक रणनीति के सामने विपक्षी तीरों की धार ख़त्म

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राजनीति परिस्थितियों और संयोगों के भरोसे नहीं, बल्कि तथ्यों और तर्कों के आधार पर होनी चाहिए। आरोपों के जवाब में प्रत्यारोप, वर्तमान के जवाब में इतिहास को लाना आज का चलन हो गया है। इतिहास से याद आया- जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कहा था कि बोफ़ोर्स घोटाले के सबूत मेरे कोट की बाईं जेब में पड़े हैं तो पूरे देश ने यक़ीन कर लिया था कि सबूत ज़रूर होंगे।

आज विपक्ष या कांग्रेस की ओर से अडाणी को लेकर सरकार पर कई आरोप लगाए जा रहे हैं, लेकिन इन पर कितने लोग भरोसा कर रहे होंगे, यह खोज का विषय है। हो सकता है आरोप सही हों, लेकिन कौन, कब, किन परिस्थितियों में किस तरह अपनी बात कह रहा है, यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है। तब वीपी सिंह की बात पर सबने भरोसा किया था। हालाँकि जाँच के बाद मामला वैसा नहीं निकला, जैसा बताया गया था, लेकिन उस वक्त तो इसका ख़ामियाज़ा राजीव गांधी सरकार को भुगतना ही पड़ा था।

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