दमोह/कुम्हारी- श्रीमद्भागवत पुराण के दूसरे दिन पंडित जी ने बताया काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहें।

दमोह/कुम्हारी- श्रीमद्भागवत पुराण के दूसरे दिन पंडित जी ने बताया काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहें।
मोहास मंदिर में चल रहे श्रीमद्भागवत पुराण के दूसरे दिन पण्डित श्री नर्मदा प्रसाद दुबे जी ने कथा में बताया कि सतयुग के अन्त में महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष। दिति के बड़े पुत्र हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा, न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा, न रात में, न घर के अंदर, न घर के बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से, उसके प्राणों को कोई डर नहीं रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपनें को अमर समझनें लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया।हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे उनके नाम थे प्रह्लाद , अनुहल्लाद , संहलाद और हल्लद थे। हिरण्यकश्यप का सबसे बड़ा पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाये। क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया, तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ, पर होलिका जलकर राख हो गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यप ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को बचाने आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था, न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था, न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से, जो न अस्त्र थे, न शस्त्र और उसका पेट चीर कर उसे मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकशिपु अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।
साथ से पण्डित जी ने इन्सान को काम, क्रोध, लोभ, मोह से बचे रहने का सन्देश दिया। इस तरह पण्डित जी ने कथा के माध्यम से समाज को कई सन्देश दिये। जो समाज को नई दिशा प्रदान करेंगे।
श्रीमद्भागवत पुराण को सुनने बहुत संख्या में धर्मप्रेमियों ने भाग लिया।
इसी कड़ी में पण्डित मनु मिश्रा, जिला अध्यक्ष, कांग्रेस कमेटी दमोह, भगवान दास चौधरी,प्रदीप खटीक, डॉ. चन्दन सिंह लोधी, जिला पंचायत सदस्य कुम्हारी, लकी गुप्ता एवं अन्य लोग शामिल हुए।
पण्डित मनु मिश्रा ने कहा कि बड़ा ही सौभाग्य है कि इस श्रीमद्भागवत पुराण और विश्वकर्मा प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर धार्मिक कार्यक्रम में शामिल हुए और पुण्य लाभ अर्जित किया।

