#chatarpur #थानेदारों की गुंडई का उदाहरण है बिजावर कांड

जिन्हें सरकार सेवक के रूप में तैनात करती है दरअसल वे सेवक कम और शासक ज्यादा होते हैं। ताजा उदाहरण छतरपुर जिले के बिजावर कस्बे का है, जहां 17 सितंबर 2023 को बिजावर थाने की पुलिस ने एक जुए के फड़ पर छापामार कार्यवाही को अंजाम दिया। इस दौरान पुलिस टीम के साथ थानेदार की गाड़ी चलाने वाले संदीप यादव ने इनमें से एक जुआड़ी की इस कदर पिटाई कर दी कि वह बेमौत मारा गया। थानेदार को तो कानून का पालन कराने और करने की जिम्मेदारी दी गई है फिर सबसे पहले कानून वही तोड़ते हैं। किस कानून के तहत वे प्राइवेट आदमी को न केवल ड्राइवर बना कर सरकारी गाड़ी चलवाते हैं बल्कि अपनी सरकारी रिवाल्वर तक उसे टांगने की अनुमति दे देते हैं। ऐसा केवल बिजावर में नहीं है आमतौर पर कई थानों में थानेदार अपने खासमखास रख कर कानून की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
इसे गुंडई नहीं तो क्या माना जाए। एक मामले में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट तक पुलिस को वर्दी वाला गुंडा कह चुकी है। बावजूद इसके कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वर्दी के गुरुर में पुलिस और उनके साथ रहने वाले लोग किसी की भी हत्या कर दें, लोकतंत्र में यह बड़ा चिंतित करने वाला मुद्दा है।
बिजावर की जागरूक जनता ने पुलिस के खिलाफ आंदोलन कर कथित हत्यारे टीआई के नजदीकी संदीप यादव पर हत्या का मुकदमा तो दर्ज करा लिया लेकिन मामले की जांच तो पुलिस को ही करनी है। इस पर भी सोचना होगा कि जांच सही दिशा में आगे बढ़े। वरना आम जनता का आक्रोश ठंडा पड़ने के बाद आरोपी के खिलाफ पर्याप्त और पुख्ता सबूत न जुटाए जाने से अदालत भी उसे बेगुनाह करार देकर बाइज्जत बरी कर देगी।
बात केवल बिजावर की नहीं है कमोबेश हर थाना इलाके में थानेदार ही सबका माई-बाप होता है। उनकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं खड़क सकता। ग्रामीण क्षेत्रों की क्या बात करें शहरी इलाकों में भी हालत इससे जुदा नहीं हैं। सबके सब अपने अधिकारों के मद में चूर होकर कर्तव्यों की तिलांजलि दे देते हैं।
जिले के वरिष्ठ अधिकारी ऐसे अफसरों पर खूब डंडा चलाएं भी तो क्या होगा जब पूरे कुएं में ही भांग घुली है। यह नैतिक पतन है। जब तक हम खुद नहीं सुधरेंगे तब तक डंडे के बल पर बदलाव की उम्मीद बेमानी है।
आप देख सकते हैं थाना प्रभारी बिजावर के बाउंसर कैसे सर्विस रिवॉल्वर लिए बैठे है हालांकि यह तस्वीर कुछ दिनों पुरानी है