नए संसद भवन में दिख रही विदिशा के विजय मंदिर की झलक, औरंगजेब ने बना दी थी मस्जिद
उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डा. भगवतीलाल राजपुरोहित का कहना है कि आज के दौर में नए भारत को गढ़ने के प्रयास हो रहे हैं जिसमें दो केंद्र बिंदु हैं। एक अयोध्या का राम मंदिर और दूसरा दिल्ली की नई संसद।
विदिशा, अजय जैन। मध्य प्रदेश के विदिशा का ऐतिहासिक विजय मंदिर फिर सुर्खियों में है। वजह शनिवार को दिल्ली में राष्ट्र को समर्पित होने वाला नया संसद भवन है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बने नए संसद भवन की डिजाइन हूबहू विजय मंदिर से मिलती है। इस मंदिर को सूर्य मंदिर भी कहा जाता है।
11वीं शताब्दी के इस परमारकालीन मंदिर को 1682 में औरंगजेब ने तोप से ध्वस्त कर यहां मस्जिद बनवा दी थी। तीन सौ से अधिक वर्षों तक यहां मस्जिद ही रही। वर्ष 1992 में जब बाढ़ से मस्जिद का एक हिस्सा ढहा तो सुरक्षा के तौर पर भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यहां खोदाई की गई, जिसमें मस्जिद के नीचे मंदिर का आधा हिस्सा बाहर दिखाई देने लगा। इसमें नींव से लेकर एक त्रिभुजाकार स्मारक शामिल था।
करीब पांच साल पहले किसी ने ड्रोन कैमरे से इस मंदिर के ऊपरी हिस्से की तस्वीरें खींची, जिसमें विजय मंदिर की भव्यता दिखाई दे रही थी। जब लोगों ने इसके समान नए संसद भवन की तस्वीरों को देखा तो उन्हें दोनों की नींव और बनावट एक समान नजर आई। तब से यह तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर बहुप्रसारित हो रही है।
वास्तुकला का नायाब उदाहरण है विजय मंदिर
प्रख्यात पुरातत्वविद डा. नारायण व्यास कहते हैं कि विजय मंदिर भूमज शैली में बना है। इसकी नींव त्रिभुजाकार है। मंदिर में तीन प्रवेश द्वार भी दिखाई देते हैं। मंदिर वास्तुकला का नायाब उदाहरण रहा है। आधुनिक वास्तुकला में प्राचीन वास्तुकला को शामिल कर राम मंदिर और नए संसद भवन को आकार दिया जा रहा है।
वहीं, उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डा. भगवतीलाल राजपुरोहित का कहना है,
राम मंदिर धार्मिक दृष्टि से और नई संसद वैश्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनके निर्माण में विजय मंदिर के प्रारूप को अपनाना विदिशा के लिए गौरव की बात है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश में 11वीं शताब्दी में वास्तुकार कितने कुशल थे।