#pakistani #शिक्षक दिवस विशेष-दहशतगर्द भी बुझा न पाए ज्ञान की मशाल

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शिक्षक दिवस विशेष-दहशतगर्द भी बुझा न पाए ज्ञान की मशाल:काकसर-तीन तरफ से पाकिस्तान से घिरा स्कूल; पदमोर-कमर तक बहती नदी पार करते हैं टीचर—–शहरी जीवन के सुख व सुरक्षा के बीच हम कभी यह नहीं जान पाते कि दुर्गम इलाकों में बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षक कितना परिश्रम कर रहे हैं। शिक्षक और बच्चे नदी, जंगल, पहाड़ और लैंडमाइन पार कर स्कूल पहुंच रहे हैं… तो कहीं स्कूल पर बम बरस रहे हैं… पर शिक्षक और ज्ञान रुकते नहीं…।

शिक्षक दिवस पर पढ़ि​ए कहानी दुर्गम इलाकों के शिक्षकों की जो कठिन परिस्थितियों में शिक्षा की मशाल जला रहे हैं। साथ ही शिक्षा से जुड़े कुछ जरूरी सवाल और कैसे बेहतर बनाएं प्राइमरी स्कूल शिक्षकों के लिए बेहतर हालात…

पहली रिपोर्ट : LoC पर काकसर गांव में बने एक स्कूल से हारून रशीद की आंखों देखी

10 महीने पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। 12 साल की एक बच्ची किसी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह बल्ले को हवा में घुमाकर गेंद को दसियों फीट दूर उछाल दे रही है। बिजली की रफ्तार से दौड़-दौड़कर रन बना रही है। छठी कक्षा की इस बच्ची मकसूमा का सपना है कि वह बड़ी होकर विराट कोहली की तरह क्रिकेट खेले।

कारगिल केंद्र से 30 किमी दूर काकसर गांव का यह सरकारी स्कूल नियंत्रण रेखा (LoC) पर बना है। इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और शिक्षकों ने युद्ध और तबाहियों के मंजर देखे हैं। गोलियां खाई हैं। लेकिन इस दहशतगर्दी के बीच स्कूल ज्ञान की मशाल लिए खड़ा है। 1952 में बने इस स्कूल ने कई पीढ़ियों को शिक्षा और हुनर की रोशनी दी है।

इस सुदूर दुर्गम गांव के स्कूल से पढ़कर निकले बच्चे आज देश-दुनिया में जिम्मेदार ओहदों पर बैठे हैं। काकसर गांव की आबादी तकरीबन 1000 है और इस वक्त स्कूल में 75 बच्चे पढ़ते हैं। एक बार तो स्कूल में क्लास चल रही थी, जब सीमा पार से गोले बरसने लगे। स्कूल के एक पूर्व शिक्षक मुख्तार हुसैन ने इस गोलाबारी में अपनी बहन को खो दिया। बम के जहरीले धुंए के कारण तकरीबन 25 बच्चे अपनी जान भी गंवा बैठे

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